Friday, October 23, 2015

अभिमान

भले ही हम इस अभिमान में रहें......
कि हमारे पास इतनी जमीन और इतना बड़ा मकान है ....... परन्तु बैठने के लिए स्थान उतना ही काम आएगा ....... जितने में हमारा स्थूल शरीर रह सकता है ।
अधिक पाने की लालसा ही मनुष्य को दुखी बनाती है ।
क्योकि अधिक पा लेना ही सुख का आधार नही है बल्कि उससे तो झंझट, दुःख और कष्ट और ही बढ़ते हैं ।भले ही हम इस अभिमान में रहें कि हमारे पास इतनी जमीन और इतना बड़ा मकान है परन्तु बैठने के लिए स्थान उतना ही काम आएगा जितने में हमारा स्थूल शरीर रह सकता है ।


खाएंगे भी उतना ही जितना शरीर को भूख मिटाने के लिए चाहिए, पहनेगे भी उतना ही जितना शरीर को ढकने के लिए चाहिए । इसलिए हमारे पास जो कुछ भी है उसी में संतुष्ट रहने से सुख मिलेगा । दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास हमारे से भी कम है किन्तु फिर भी वे आनन्द के साथ रहते हैं ।
मानसिक शान्ति के लिए हमे इन स्थूल चीजों की नही बल्कि कुछ विशेष बातों को अपने में धारण करने की आवश्यकता है....यदि हम दूसरों के भाग्य को देख उनसे ईर्ष्या ना करे, दूसरों की आलोचना ना करें, अपने जीवन में आने वाले हर सुख दुःख को अपने ही पूर्व कर्मो का फल मान कर स्वीकार करें ।
किसी से कोई अपेक्षा ना रखें और भगवान पर भरोसा रख अपनी मदद स्वयं करें तो जीवन की इस दौड़ में हम सहजता और सफलतापूर्वक आगे बढ़ते जायेंगे ।और जीवन की सरल, सुखद व शांतमय बना सकेंगे ।

Thursday, October 15, 2015

गीता दर्पण - प्रश्न उत्तर


प्रश्न ‒परमात्मा तो सर्वव्यापी हैं, फिर उनको (३ । १५ में) केवल यज्ञमें नित्य प्रतिष्ठित क्यों कहा गया है ? क्या वे दूसरी जगह नित्य प्रतिष्ठित नहीं हैं ?
उत्तरसर्वव्यापी परमात्माको यज्ञ अर्थात् कर्तव्यकर्ममें नित्य प्रतिष्ठित कहनेका तात्पर्य है कि यज्ञ उनका उपलब्धि-स्थान है । जैसे जमीनमें सब जगह जल होनेपर भी वह कुएँसे प्राप्त होता है, ऐसे ही परमात्मा सब जगह परिपूर्ण होनेपर भी अपने कर्तव्यकर्मका निष्कामभावपूर्वक पालन करनेसे प्राप्त होते हैं । तात्पर्य है कि अपने कर्तव्य-कर्मका पालन करनेसे सर्वव्यापी परमात्माका अनुभव हो जाता है ।

प्रश्न‒भगवान्‌ कहते हैं कि मैं भी कर्तव्यका पालन करता हूँ; क्योंकि अगर मैं सावधानीपूर्वक कर्तव्यका पालन न करूँ तो लोग भी कर्तव्यच्युत हो जायँगे (३ । २२-२४), तो फिर वर्तमानमें लोग कर्तव्यच्युत क्यों हो रहे हैं ?
उत्तर‒भगवानके वचनों और आचरणोंका असर उन्हीं लोगोंपर पड़ता है, जो आस्तिक हैं, भगवान्‌पर श्रद्धा-विश्वास रखनेवाले हैं । जो भगवान्‌पर श्रद्धा-विश्वास नहीं रखते, उनपर भगवान्‌के वचनों और आचरणोंका असर नहीं पड़ता ।
प्रश्नज्ञानवान् पुरुष अपनी प्रकृति-(स्वभाव-) के अनुसार चेष्टा करता है (३ । ३३), पर वह बँधता नहीं । अन्य प्राणी भी अपनी प्रकृतिके अनुसार ही चेष्टा करते हैं, पर वे बँध जाते हैं । ऐसा क्यों ?
उत्तरज्ञानी महापुरुषकी प्रकृति तो राग-द्वेषरहित, शुद्ध होती है; अतः वह प्रकृतिको अपने वशमें करके ही चेष्टा करता है, इसलिये वह कर्मोसे बँधता नहीं । परंतु अन्य प्राणियोंकी प्रकृतिमें राग-द्वेष रहते हैं और वे प्रकृतिके वशमें होकर राग-द्वेषपूर्वक कार्य करते हैं, इसलिये वे कर्मोसे बँध जाते हैं । अतः मनुष्यको अपनी प्रकृति, अपना स्वभाव शुद्ध‒निर्मल बनाना चाहिये और अपने अशुद्ध स्वभावके वशमें होकर कोई कार्य नहीं करना चाहिये ।
प्रश्नचौथे अध्यायके सातवें श्लोकमें भगवान्‌ने कहा है कि मैं अपने-आपको साकाररूपसे प्रकट करता हूँ, और फिर वे नवें अध्यायके चौथे श्लोकमें कहते हैं कि मैं अव्यक्तरूपसे सम्पूर्ण संसारमें व्याप्त हूँ, तो जो एक देशमें प्रकट हो जाते हैं, वे सब देशमें कैसे व्याप्त रह सकते हैं और जो सर्वव्यापक हैं, वे एक देशमें कैसे प्रकट हो जाते हैं ?
उत्तरजब एक प्राकृत अग्नि भी सब जगह व्यापक रहते हुए एक देशमें प्रकट हो जाती है और एक देशमें प्रकट होनेपर भी अग्निका सब देशमें अभाव नहीं होता, फिर भगवान्‌ तो प्रकृतिसे अतीत हैं, अलौकिक हैं, सब कुछ करनेमें समर्थ हैं, वे अगर सब जगह व्यापक रहते हुए एक देशमें प्रकट हो जायँ तो इसमे कहना ही क्या है ! तात्पर्य है कि अवतार लेनेपर भी भगवान्‌की सर्वव्यापकता ज्यों-की-त्यों बनी रहती है ।


प्रश्न‒कर्मोंका आरम्भ न करना और कर्मोंका त्याग करना‒ये दोनों बातें एक ही हुई; क्योंकि दोनोंमें ही कर्मोंका अभाव है । अतः भगवान्‌को ‘कर्माभावसे सिद्धि नहीं होती’ ऐसा कहना चाहिये था । फिर भी भगवान्‌ने (३ । ४ में) उपर्युक्त दोनों बातें एक साथ क्यों कहीं ?
उत्तर‒भगवान्‌ने ये दोनों बातें कर्मयोग और ज्ञानयोगकी दृष्टिसे अलग-अलग कही हैं । कर्मयोगमें निष्कामभावसे कर्मोंको करनेसे ही समताका पता लगता है; क्योंकि मनुष्य कर्म करेगा ही नहीं तो ‘सिद्धि-असिद्धिमें मैं सम रहा या नहीं’‒इसका पता कैसे लगेगा ? अतः भगवान्‌ कहते है कि कर्मोंका आरम्भ न करनेसे सिद्धिकी प्राप्ति नहीं होती । ज्ञानयोगमें विवेकसे समताकी प्राप्ति होती है, केवल कर्मोंका त्याग करनेसे नहीं । अतः भगवान्‌ कहते हैं कि कर्मोका त्याग करनेमात्रसे सिद्धिकी प्राप्ति नहीं होती । तात्पर्य है कि कर्मयोग और ज्ञानयोग‒दोनों ही मार्गोंमें कर्म करना बाधक नहीं है ।
प्रश्न‒कोई भी मनुष्य हरदम कर्म नहीं करता और नींद लेने, श्वास लेने, आँखोंकी खोलने-मीचने आदिको भी वह ‘मैं करता हूँ’‒ऐसा नहीं मानता तो फिर तीसरे अध्यायके पाँचवें श्लोकमें यह कैसे कहा गया कि कोई भी मनुष्य किसी भी अवस्थामें क्षणमात्र भी कर्म किये बिना नहीं रहता ?
उत्तर‒जबतक स्वयं प्रकृतिके साथ अपना सम्बन्ध मानता है, तबतक वह कोई क्रिया करे अथवा न करे, उसमें क्रियाशीलता रहती ही है । वह क्रिया दो प्रकारकी होती है‒क्रियाको करना और क्रियाका होना । ये दोनों विभाग प्रकृतिके सम्बन्धसे ही होते हैं । परंतु जब प्रकृतिका सम्बन्ध नहीं रहता, तब ‘करना’ और ‘होना’ नहीं रहते, प्रत्युत ‘है’ ही रहता है । करनेमें कर्ता, होनेमें क्रिया और ‘है’ में तत्त्व रहता है । वास्तवमें कर्तृत्व रहनेपर भी ‘है’ रहता है और क्रिया रहनेपर भी ‘है’ रहता है अर्थात् कर्ता और क्रियामें तो ‘है’ का अभाव नहीं होता, पर ‘हैं’ में कर्ता और क्रिया‒दोनोंका अभाव होता है ।
प्रश्न‒वर्षाके साथ तो हवनरूप यज्ञका सम्बन्ध है अर्थात् विधि-विधानसे हवनरूप यज्ञ किया जाय तो वर्षा हो जाती है, फिर भी तीसरे अध्यायके चौदहवें श्लोकमें ‘यज्ञाद्भवति पर्जन्यः’ पदोंमें आये ‘यज्ञ’ शब्दसे हवनरूप यज्ञ न लेकर कर्तव्य-कर्मरूप यज्ञ क्यों लिया गया ?
उत्तर‒वास्तवमें देखा जाय तो कर्तव्यच्युत होनेसे, अकर्तव्य करनेसे ही वर्षा नहीं होती और अकाल पड़ता है । कर्तव्य-कर्म करनेसे सृष्टिचक्र सुचारुरूपसे चलता है और कर्तव्य-कर्म न करनेसे सृष्टिचक्रके चलनेमें बाधा आती है । जैसे बैलगाड़ीके चक्के ठीक रहनेसे गाड़ी ठीक चलती है; परन्तु किसी एक भी चक्केका थोड़ा-सा टुकड़ा टूट जाय तो उससे पूरी गाड़ीको धक्का लगता है, ऐसे ही कोई अपने कर्तव्यसे च्युत होता है तो उससे पूरी सृष्टिको धक्का लगता है । वर्तमान समयमें मनुष्य अपने-अपने कर्तव्यका पालन नहीं कर रहे है, प्रत्युत अकर्तव्यका आचरण कर रहे है, इसी कारण अकाल पड़ रहा है, कलह-अशान्ति बढ़ रही है । अगर मनुष्य अपने-अपने कर्तव्यका पालन करें तो देवता भी अपने-अपने कर्तव्यका पालन करेंगे और वर्षा हो जायगी ।
दूसरी बात, अर्जुनका प्रश्र (३ । १-२) और भगवान्‌का उत्तर (३ । ७-९) तथा प्रकरण (३ । १०-१३) को देखा जाय तो कर्तव्य-कर्मका ही प्रवाह है; और आगेके श्लोकों (३ । १४-१६) में भी कर्तव्य-कर्मकी ही बात है । अतः यहाँ कर्तव्य-कर्मरूप यज्ञ लेना ही ठीक बैठता है ।


बाबा रामदेव


अगर इंसान सीखना चाहे तो इनको सुनकर ही ये सीख सकता है कि आदर्श जीवन कैसा होता है और वैसा ही जीवन जीने का प्रयास कर सकता है |
किस किस तरह से बाबा रामदेव देश की भलाई के कार्यों में कार्यरत है अगर उसका मूल्याङ्कन करे तो हम पाएंगे शायद सरकारों ने भी देश का उतना भला नहीं किया होगा जितनी इस अकेले व्यक्ति के विचारों ने और इस अकेले व्यक्ति के संकल्प ने देश के लिए और देशवासियों के लिए किया है |
१. स्वदेशी आन्दोलन का मूर्त रूप पतंजलि के पदार्थ -
बाबा ने जो स्वदेशी के कार्यो को आगे बढाया है उसका परिणाम अब नज़र आने लगा है जब FMCG के क्षेत्र में पतंजलि देश की एक सबसे बड़ी कंपनी बन गयी है और अभी अभी उसने फ्यूचर ग्रुप से गठबंधन किया है जिसके माध्यम से भारतीय जनमानस को उच्च गुणवत्ता के दैनिक और विशेष जरुरत सभी पदार्थ अब बिग बाज़ार जैसे रिटेल स्टोर्स पर भी उपलब्ध होंगे | अभी हमको महंगे विदेशी पदार्थो को झेलने की आवश्यकता नहीं है क्यूंकि विदेशी खाद्य पदार्थो पर तो ये तक नहीं लिखा रहता कि वो किस किस मूल तत्व से मिलकर बना है और उसके बहाने हमें जो खिलाया जाता है उसका कुछ भी विश्वास नहीं होता कि उसमे हमारी पूज्य गौमाता की चर्बी का प्रयोग हुआ होता है | लेकिन पतंजलि के पदार्थो के लेबल पर सभी मूल तत्व विस्तार से मात्रा के साथ लिखे रहते है और ये पूरी तरह जांच के बाद ही हम तक आते है जो पूरी तरह प्रमाणित होते है | सभी विदेशी कंपनियों के पैर अब उखड़ने लगे है और उनको अपने सभी पदार्थो की कीमत अब एक एक करके पतंजलि के पदार्थो की वजह से कम करनी पड़ रही है | जब हमारे पास स्वदेशी विकल्प मौजूद है तो क्यूँ हम विदेशी पदार्थो का प्रयोग करेंगे भाई | आज 2000 करोड़ का टर्नओवर हो गया है पतंजलि का जो आगे चल कर बढ़ता ही जायेगा | जिस स्वदेशी की परिकल्पना देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आज़ादी के लड़ते हुए की होगी उसी का मूर्त रूप है बाबा रामदेव के पतांजलि के पदार्थ |
२. शिक्षा के क्षेत्र में आचार्यकुलम की स्थापना करके जिस तरह से बाबा रामदेव एक पूर्ण स्वदेशी शिक्षा की आधारशिला भारत भर में रखने की तरफ अग्रसर है इस तरह से तो भारत सरकार भी हमारे लिए कार्य नहीं कर रही है | आने वाले समय में 500 आचार्यकुलम भारत के हर नगर में खोलने का विचार बाबाजी दे ही चुके है और जिस पर कार्य चल ही रहा है | इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज भी चल रहा है हरिद्वार में |
३. स्वास्थ्य के क्षेत्र में - योग और आयुर्वेद को जिस तरह से प्रथम स्थान पर रखकर आज तक बाबा रामदेव और आचार्य बाल कृष्ण जी ने आज देश के जनमानस को स्वस्थ रहने का एक मजबूत विकल्प प्रदान किया है वो सिर्फ और सिर्फ उनके ही बस की बात है | ये सब किसी सरकार के बस में नहीं है क्यूंकि संकल्प की शक्ति तो सिर्फ एक योगी में ही हो सकती है जो सबका भला करने के लिए ही इस धरा पर अवतरित होते है वो भ बदले में बिना कुछ चाहे | जिस तरह से सूर्य अपनी गर्मी और रौशनी हम सभी को बिना किसी बिजली के बिल के प्रदान करता है उसी तरह से एक ऋषि एक योगी व्यक्ति इस तरह के विचारों से देश के जनमानस को ओतप्रोत कर देता है जिससे वो अपना और अंततः समाज का भला करने की तरह अग्रसर हो, उसी तरह से बाबा रामदेव ने हम सभी के विचारों को आंदोलित किया जिनकी प्रेरणा से हम सभी सुबह सुबह योग करने को प्रेरित हुए और स्वस्थ रहते हुए देश सेवा के लिए भी प्रेरित हुए |
४. राजनीती के क्षेत्र में - पूरे देश में योग शिविरों के माध्यम से २०१४ के लोकसभा चुनावों के समय देश को काली कांग्रेस की काली करतूतों को बताने का दुर्लभ कार्य करके जो स्वामी जी ने देश को मोदी के नेतृत्व में देश की राजनीती में एक स्वच्छ राजनीती का विकल्प देश को दिया उसके लिए देश का जनमानस उनका ऋणी रहेगा | जिस तरह से देश के बड़े बड़े ऋषि मुनियों ने देश को मोदी नेतृत्व को सौपने के लिए स्वामीजी के नेतृत्व में मुहीम चलायी और स्वामी जी ने जिस तरह से 9 माह तक लगातार यात्रा करके ये संकल्प लिया कि वो तब तक पतंजलि योगपीठ नहीं जायेंगे जब तब देश की राजनीती का रुख न मोड़ दे और जब 9 माह पश्चात ये सुनिश्चित हो गया कि अब देश का नेतृत्व एक सुरक्षित हाथों में एक देशभक्त मोदी जैसे राज ऋषि के हाथो में है तब ही उन्होंने पतंजलि योगपीठ का रुख किया नहीं तो वो लगातार देश में अलख जागते रहे दिन रात घूम घूम कर पूरे देश में जनसभा कर कर के |
५. देश की संस्कृति को बचाने के लिए अपने जैसे 500 ऋषि ऋषिकायों को प्रशिक्षित कर रहे है जो सेवावृति बन कर आगे चल कर देश को जगायेंगे और हमारी भारतीय संस्कृति को जनमानस में बढ़ने का कार्य करेंगे |
इसके अलावा भी बहुत से प्रकल्पो पर पतंजलि योगपीठ कार्यरत है देश सेवा में |

National Programme on Technology Enhanced Learning (NPTEL)

अगर आपको ऑनलाइन पढने में दिलचस्पी है तो ये जगह NPTEL आपके लिए ही है | आप बहुत कुछ सीख सकते है और आगे आने वाले समय के लिए अपने को तैयार कर सकते है |
ये वेबसाइट और वीडियो विशेषकर उन छात्रों के लिए लाभदायक है जिनको विषय का ज्ञान लेने में तो अत्यधिक रूचि है पर सरकारी स्कूलों में शिक्षक के अभाव की वजह से या शिक्षक के निक्कमेपन की वजह से उनको सही ज्ञान मिल नहीं पाता और उनके पास महंगे प्राइवेट संस्थानों में देने को लाखो रूपये नहीं होते | शिक्षा के गिरते स्तर को उठाने में ये NPTEL कार्यक्रम एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है बस जरुरत है इस बात की कि सभी इसका प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करना आरम्भ कर दे |
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अगस्त 2015 तक NPTEL ने अपने इस उपक्रम में 440 वेब पाठ्यक्रम तथा लगभग 500 विडिओ पाठ्यक्रम अपलोड किये है| इन पाठ्यक्रमो में कुल 921 प्रकार के कोर्स है और प्रत्येक कोर्स के लगभग 40 विडियो लेक्चर है जो एक - एक घंटे के है |
कृपया इस सन्देश को फैलाएं जितना हो सके उतना - चाहे कॉपी करके अपने नाम से ही फैलाये लेकिन विद्यार्थियों के भविष्य के लिए इस सन्देश को फैलाएं अवश्य |
National Programme on Technology Enhanced Learning (NPTEL)
Its a project funded by the Ministry of Human Resource Development (MHRD), provides e-learning through online Web and Video courses in Engineering, Sciences, Technology, Management and Humanities. This is a joint initiative by seven IITs and IISc Bangalore. Other selected premier institutions also act as Associate Partner Institutions.
https://www.youtube.com/user/nptelhrd
http://blog.sureshchiplunkar.com/…/free-iit-courses-from-np…
ॐ शांति

गौ हत्या का इतिहास




भारत मे गौ हत्या का इतिहास..
गौ हत्या कैसे शुरू हुई ? और अभीतक तक बंद क्यों नही हुई? वो जानना चाहते है तो पूरा लेख अवश्य पढ़िए।
१. भारत देश में मुगल सीधा गाय का कत्ल करते थे और कई बार हमारे राजा मुगलों का इसी बात पर वध करते थे !
२. जैसे शिवाजी ने गौ माता को बचाने के लिए एक मुगल राजा की बाजू काट दी थी !! लेकिन उन्होने कोई कत्लखाना नहीं खोला !
३. पर जब अंग्रेज़ आए तो ये बहुत चालक थे ! किसी भी गलत काम को करने से पहले उसको कानून बना देते थे फिर करते थे और कहते थे क़ि हम तो कानून का पालन कर रहे हैं !!
४. भारत मे पहला गौ का कत्लखाना 1707 ईस्वी ने "रॉबर्ट क्लाएव" ने खोला था और उसमे रोज की 32 से 35 हजार गाय काटी जाती थी ! तो कत्लखाने के साइज़ का अंदाजा आप लगा सकते हैं ! और तब हाथ से गाय काटी जाती थे ! तो
सोच सकते हैं कितने कसाई उन्होने रखे होंगे !
५. आजादी के 5 साल बाद 1952 मे पहली बार संसद मे ये बात उठी कि गौ रक्षा होनी चाहिए ! गाय के सभी कत्लखाने जो भारत मे अंग्रेज़ो ने शुरू किए थे बंद होने चाहिए ! और यही गांधी जी कि आत्मा को श्रद्धांजलि होगी ! क्यूकि ये उनके आजाद भारत के सपनों मे से पहले नंबर पर था !
६. तो नेहरू पंडित खड़े हुए और बोले चलो ठीक है अगर गौ रक्षा का कानून बनना चाहिए तो इस पर संसद मे प्रस्ताव आना चाहिए ! तो संसद मे एक सांसद हुआ करते थे महावीर त्यागी वो आर्य समाजी थे और सोनीपत से अकेले चुनाव लड़ा करते थे ! पहला चुनाव जो 1952 मे हुआ उसमे वो बहुत भयंकर वोटो से जीत कर आए थे !
७. तो महावीर त्यागी ने कहा-ठीक मैं अपने नाम से प्रस्ताव लाता हूँ ! तो प्रस्ताव आया उस पर बहस हुई ! बहस के बाद तय किया कि वोट किया जाय इस पर ! तो वोट करने का दिन आया !
८. तब पंडित नेहरू ने एक बयान दिया !जो लोकसभा के रिकॉर्ड मेँ है आप चाहे तो पढ़ सकते हैं ! नेहरू ने कहा-अगर ये प्रस्ताव पारित हुआ तो मैं शाम को इस्तीफा दे दूंगा ! मतलब ?? गौ-रक्षा अगर हो गई इस देश मेँ तो मैं प्रधानमंत्री नहीं रहूँगा ! परिणाम क्या हुआ जो कांग्रेसी नेता संसद मे गौ रक्षा के लिए वोट डालने को तैयार हुए थे नेहरू का ये वाक्य सुनते ही सब पलट गए !
9. तो उस जमाने मे क्या होता था कि नेहरू जी अगर पद छोड़ दे तो क्या होगा? क्यूंकि वल्लभ भाई पटेल का स्वर्गवास हो चुका था ! तो कांग्रेसी नेताओ मे चिंता रहती थी कि अगर नेहरू जी भी चले गए फिर पार्टी का क्या होगा और पता नही अगली बार जीतेंगे या नहीं जीतेंगे ! और उस समय ऐसी बात चलती थी nehru is india india is नेहरू !(और ये कांग्रसियो की आदत है indra is india india is indra )
१०. तो बाकी कोंग्रेसी पलट गए और संसद मे हंगामा कर दिया और गौ रक्षा के कानून पर वोट नहीं हुआ ! और अगले दिन महावीर त्यागी को सब ने मजबूर कर दिया और उनको प्रस्ताव वापिस लेना पड़ा !
११. महावीर त्यागी ने प्रस्ताव वापिस लेते समय भाषण किया और बहुत ही जबर्दस्त भाषण किया ! उन्होने कहा-पंडित नेहरू मैं तुमको याद दिलाता हूँ कि आप गांधी जी के परम शिष्य है और गांधी जी ने कहा था भारत आजाद होने के बाद जब पहली सरकार बनेगी तो पहला कानून गौ रक्षा का बनेगा ! अब आप ही इस से हट रहे है तो हम कैसे माने कि आप गांधी जी के परम शिष्य है ???
१२. और उन्होने कहा मैं आपको आपके पुराने भाषणो की याद दिलाता हूँ ! जो आपने कई बार अलग अलग जगह पर दिये है ! और सबमे एक ही बात कही है कि मुझे कत्लखानों से घिन्न आती है । इन सबको तो एक मिनट मे बंद करना चाहिए ! मेरी आत्मा घबराती है ये आपने कितनी बार कहा लेकिन जब कानून बनाने का समय आया तब आप ही अपनी बात से पलट रहे है ? नेहरू ने इन सब बातों को कोई जवाब नहीं दिया ! और चुप बैठा रहा !और बात आई गई हो गई !
१३. फिर एक दिन 1956 में नेहरू ने सभी मुख्य मंत्रियो को एक चिट्ठी लिखी वो भी संसद के रिकॉर्ड में है ! अब नेहरू का कौन सा स्वरूप सही था और कौन सा गलत ! ये तय करने का समय आ गया हैं ! जब वे गांधी जी के साथ मंच पर होते थे तब भाषण करते थे कि कत्लखाने के आगे से गुजरता हूँ तो घिन्न आती है आत्मा चीखती है ! ये सभी कत्लखाने जल्द बंद होने चाहिए !और जब
वे प्रधानमंत्री बनते है तो मुख्य मंत्रियो को चिट्ठी लिखते हैं कि गाय का कत्ल बंद मत करो क्योंकि इससे विदेशी मुद्रा मिलती है ! उस पत्र का अंतिम वाक्य बहुत खतरनाक था उसमे नेहरू लिख रहा है मान लो हमने गाय हत्या बंद करवा दी ! और गौ रक्षा होने लगी तो सारी दुनिया हम पर हँसेगी कि हम भारत को 18वीं शताब्दी में ले जा रहे हैं ! ! अर्थात नेहरू को ये लगता था कि गाय का कत्ल होने से देश 21 वी शताब्दी मे जा रहा है ! और गौ रक्षा होने से 18 वी शताब्दी की ओर जाएगा !
१४. राजीव भाई का ह्रदय इस पत्र को पढ़ कर बहुत दुखी हुआ ! राजीव भाई के एक बहुत अच्छे मित्र थे उनका नाम था रवि राय जो लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके थे !उनकी मदद से ये पत्र मिला ! संसद कि लायब्रेरीमे से ! और उसकी फोटो कॉपी रख ली!! तो राजीव भाई ने ये जानने की कोशिश की क़ि आखिर नेहरू जी के जीवन की ऐसे कौन से बात थी जो वो गौ ह्त्या को चालू रखना चाहते थे ! क्यूंकि पत्र मे नेहरू लिखता है कि विदेशी मुद्रा मिलती है तो क्या विदेशी मुद्रा ही एक प्रश्न था या इससे भी कुछ आगे था ! राजीव भाई कहते है कि मेरा ये व्यक्तिगत मानना है ये गलत भी हो सकता है ! वो कहते है कि इंसान अपनी public life (सार्वजनिक जीवन) मे जो करता है ! उसकी जड़े उसकी private life(निजी जीवन) मे जरूर होती है ! वो भारत का प्रधानमंत्री हो,राष्ट्रपति हो देश के किसी सवैधानिक पद पर बैठा हुआ हो या कोई आम इंसान हो ! या कोई किसान कोई भी व्यक्ति हो अपनी public life (सार्वजनिक जीवन) मे जो करते है ! उसकी जड़े उसकी जड़े उसकी private life मे जरूर होती है !
१५. मतलब नेहरू कि private life में क्या था जो वो गाय की ह्त्या के लिए इतने परेशान थे ! और इसके लिए राजीव भाई ने बहुत प्रयास किया और नेहरू के निजी जीवन के private life के बहुत दस्तावेज़ इकट्ठे किए !! कम से कम 500 से ज्यादा उनके पास थे ! तो पता चला नेहरू खुद गाय का मांस खाता था ! राजीव भाई कहते है इससे पहले मुझे इतना तो मालूम था कि नेहरू जी शराब पीते हैं ! और सिगरेट भी पीते है और chain smoker है दिन मे 60 से 70 सिगरेट पी जाते हैं !और भी बहुत कुछ मालूम था उनके चरित्र के बारे मे ! पर ये पहली बार पता चला कि वो गाय का मांस भी खाते हैं ! और उनके लिए गाय मांस के भोजन को बनाकर तैयार करके उनको lunch के रूप मे भेजने का काम दिल्ली का वही होटल करता था जहां अमेरिका का प्रधानमंत्री जार्ज बुश अंतिम बार 2006 मे आया था और वहाँ रुका था ! और नेहरू का एक दिन का खर्चा उस जमाने मे 13 हजार रुपए होता था ।
१६. जिस पर भारत के एक समाजवादी नेता ने बड़ी कड़क टिप्पणी की थी राम मनोहर लोहिया ने ! उन्होने संसद मे एक दिन बहुत जोऱदार भाषण दिया था !
कि नेहरू तुम्हारा एक समय के भोजन का खर्च 13 हजार रुपए है और भारत के 14 करोड़ लोगो को खाने के लिए 2 समय की रोटी नहीं है !तुमको शर्म नहीं आती उस समय के जमाने मे लोहिया जी एक व्यक्ति थे जो नेहरू जी को इस तरह से बोल पाते थे बाकि सब नेहरू के आगे पीछे ही घूमते थे !
१७. जब ये दस्तावेज़ मिल गए तो ये बात समझ आती है कि नेहरू के मन मे गाय के लिए प्रेम सिर्फ एक दिखावा था गांधी जी को खुश करने के लिए था और भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए था एक बार प्रधानमंत्री बन गए अब तो कोई कष्ट नहीं है कोई रोकने वाला नहीं तो टोकने वाला नहीं और सरदार पटेल की मृत्यु के बाद तो कोई नहीं !
१८. और राजीव भाई कहते है ये जो जितनी बाते मैंने आपको नेहरू के बारे मे कही है सब की सब लोकसभा के रिकॉर्ड मे है और कभी इतिहास लिखा जाये तो ये सब का सब सामने आ जाये ! और पूरे देश को नेहरू का काला चिट्ठा पता चल गया।
१९. अब आगे की बात करें नेहरू के बाद से आजतक गाय ह्त्या रोकने का बिल पास क्यूँ नहीं हुआ??? दस्तावेज़ बताते हैं इसके बाद के दो ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने पूरी ईमानदारी से गौ ह्त्या रोकने का कानून लाने की कोशिश की ! उनमे से एक का नाम था श्री लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे श्री मोरारजी देसाई !
२०. श्री मोरारजी भाई ये कानून पास करवा पाते कि उनकी सरकार गिर गई ! या दूसरे शब्दों मे कहे क़ि सरकार गिरा दी गई ! क्योंकि वही एक मात्र ऐसे प्रधान मंत्री थे ! जिन्होंने बहुत हिम्मत वाला काम किया था अमेरिका की कंपनी
coca cola को 3 दिन का नोटिस दिया और भारत से भगा दिया ! और ऐसा नोटिस केवल coco cola को नहीं बल्कि एक और बड़ी विदेशी कंपनी hul(hindustaan uniliver ) को भी दिया और ऐसे करते करते काफी विदेशी कम्पनियों को नोटिस जारी किया कि जल्दी से जल्दी तुम भारत छोड़ दो !
इसके अलावा उन्होने एक और बढ़िया काम किया था गुजरात में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया ! और वो आजतक है वो बात अलग है कि black मे कहीं शराब मिल जाती है पर कानूनी रूप से प्रतिबंध है ! और उन्होंने कहा था ऐसा मैं पूरे भारत मे करूंगा और जल्दी से गौ रक्षा का कानून भी लाऊँगा और गौ ह्त्या करने वाले को कम से कम फांसी की सजा होगी !
21. तो देश मे शराब बेचने वाले,गौ ह्त्या करने वाले और विदेशी कंपनियों वाले ! ये तीनों lobby सरकार के खिलाफ थी इन तीनों ने मिल कर कोई षड़यंत्र रचा होगा जिससे मोरारजी भाई की सरकार गिर गई !!
२२. लालबहादुर शास्त्री जी ने भी एक बार गौ ह्त्या का कानून बनाना चाहा पर वो ताशबंद गए और फिर कभी जीवित वापिस नहीं लौटे!
२३. और अंत 2003 मे श्री अटल बिहारी वाजपेयी की NDA सरकार ने गौ ह्त्या पर सुबह संसद मे बिल पेश किया और शाम को वापिस ले लिया !! क्यों??
अटल जी की सरकार को उस समय दो पार्टिया समर्थन कर रही थी एक थी तेलगु देशम और दूसरी तृणमूल कॉंग्रेस ! दोनों ने लोकसभा मे कहा अगर गौ ह्त्या पर कानून पास हुआ तो समर्थन वापिस !! बाहर मीडिया वालों ने ममता बेनर्जी से पूछा क़ि आप गौ ह्त्या क्यूँ नहीं बंद होने देना चाहती ??? ममता बेनर्जी ने कहा गाय का मांस खाना मौलिक अधिकार है।
24. अब आपको पूरा लेख पढ़ने से लगा होगा क़ि गौरक्षा नही करने के पीछे कौन लोग थे?
२५.अभी सरकार से अपील है की शीघ्र गौ हत्या बंद कराएं।
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सेकुलेर काबिले के लोग और उनकी सच्चाई





खुद को सेक्युलर बताने वाले तत्वों के दोहरे मानदंड को उजागर कर रहे है लेखक तुफैल अहमद आज के सम्पादकीय पृष्ठ पर दैनिक जागरण के
बहुत ही सही विश्लेषण किया है अहमद साहिब ने जो आज के मीडिया , सेकुलरिस्टों और वाम्पंथियों के दुष्कर्म को पूरी तरह उजागर कर रहा है |
जब भीड़ दादरी में किसी मुस्लिम को मारती है तो सभी को दिखता है लेकिन जब भीड़ किसी और धर्म के नुमाइंदे को मेरठ में या हाजीपुर में या इलुरू या मुंबई भांडुप में मारती है तो इनको कुछ दिखाई नहीं देता क्यूंकि इनके चश्मे का रंग सिर्फ एक समाज के लोगो को ही देखता है |
और एक बात को उजागर किया है लेखक ने कि ये तथाकथित सेक्युलरिस्ट जमात आधी पाकिस्तानी भी है जिसकी हमदर्दी गुलाम अली से तो है जिसको सेक्युलर सरकारे चाहे केजू की हो या अखिलेश की, अपने राज्य में आमंत्रित करके अपना शो करने को कहती है, लेकिन इसकी हमदर्दी ऑस्कर पुरूस्कार विजेता AR रहमान से नहीं है या सलमान रुश्दी जैसे भारतीय लेखको से भी नहीं है |
ईश्वर इनको सद्बुद्धि दे जिससे ये इस तरह के देशद्रोह के कृत्य करने से अपने आप को बचा पाए |

ॐ शांति

नेताजी की सच्चाई और मोदी का फैसला




अभी ये तो पूर्ण रूप से कोई भी नहीं जानता कि २३ जनवरी २०१६ को जब नेताजी सम्बन्धी फाइल खुलेंगी तब नेहरु गाँधी परिवार की सभी नेताजी के प्रति की गयी ज्यादतियों को वो उजागर कर पायेगी कि नहीं लेकिन एक आशा की किरण जरुर दिखती है प्रधान मोदी जी के इस घोषणा के बाद |
नेहरु ने हमारी आज़ादी को जो हमें 1947 में प्राप्त हुई थी इस तरह प्रचारित प्रसारित करवाया था कि जैसे आजादी हमें अंग्रेजों की दया के कारण मिल गयी वो भी बिना लड़े ही लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी | आज़ादी पाने के लिए इस देश के जनमानस ने 1857 से लेकर 1947 तक संघर्ष किया है, कभी १८५७ के ग़दर के रूप में या कभी तरह तरह के आंदोलनों के रूप में जिसने ४ लाख से ज्यादा कुर्बानियां दी गयी है | हम सिर्फ कुछ लोगो को ही जानते है जिन्होंने आज़ादी के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी जिनमे भगत सिंह / चन्द्र शेखर आज़ाद आदि का नाम लिया जाता है, लेकिन इनके अलावा भी ऐसे बहुत से स्वतंत्रता वीर थे जिनके नाम हम जानते नहीं है |
सरकार को प्रयास करके नेताजी के आलावा भी उन सभी वीरो का परिचय देश की जनता से करवाना चाहिए, जिससे उन्होंने जो अपना सर्वोच्च बलिदान देश के लिए दिया उसको सच्ची श्रद्धांजलि देश की जनता अर्पित कर सके |
आज़ादी के लिए आज़ाद हिन्द फौज के संघर्ष और योगदान को भुला दिया गया और नेहरु की वजह से इस फौज के सेनानियों वो सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वो हकदार थे | आज मोदी सरकार को आज़ाद हिन्द फौज के सिपाहियों को उनका सम्मान देना चाहिए |
हाँ इसको एक शुरुआत नेताजी की सच्चाई सामने आने से हो जाएगी बस ये ही कहा जा सकता है अभी तो |

ॐ शांति

Wednesday, August 19, 2015

गाजी बाबा की मजार का सच और भविष्य की कसाब बाबा की मज़ार

हजारो निर्दोष लोगो के हथियारे कसाब को फांसी हो चुकी है !
मान लो एक खास संप्रदाय के लोग उसे शहीद का दर्जा दे देते है !
और उसकी मजार बना देते है फिर वहाँ रोज माथाटेकना शुरू कर देते है 10-15 साल बाद भीड़ को देखते हुए हिन्दू भी वहाँ माथा टेकने लग जाते है !!
और 30 -35 साल बाद वह मजार (कसाब बाबा की मजार ) के नाम से प्रचलित हो जाती है प्रतिदिन सैंकड़ों हिन्दू आते है माथा टेकते है ,मन्नते मांगते है ! 60-65 साल बाद लोग कसाबका इतिहास भुला चुके होते है और तब कई तरह की अफवाए फैलाई जा चुकी होती है की कसाब तो राम केअवतार थे फलाना थे डमाका थे , उन्होने ये चमत्कार किए थे !और एक दिन कोई संत कसाब की पुजा करने को गलत बताता है और उसे राम ,कृष्ण शिवजी आदि के साथ जोड़ने का विरोध करता है
और
तब मूर्ख हिन्दू बिना उस संत की बात सुने बिना कसाब बाबा की मजार का इतिहास पढे उस संत के पुतले फूंकते हैक्या कहेंगे आप इसे ?
ऊपर लिखी बात अगर आपको कल्पना लगती है तो एक बार ये पढ़ें !!
पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक शहर है,बहराइच ।
बहराइच में हिन्दू समाज का सबसे मुख्य पूजा स्थल है गाजी बाबा की मजार। मूर्ख हिंदू लाखों रूपये हर वर्ष इस पीर पर चढाते है।
इतिहास जानकर, हर व्यक्ति जानता है कि महमूद गजनवी के उत्तरी भारत को १७ बार लूटने व बर्बाद करने के कुछ समय बाद उसका भांजा सलार गाजी भारत को दारूल इस्लाम बनाने के उद्देश्य से भारत पर चढ़ आया ।
(कुरान के अनुसार दर-उल -इस्लाम = 100% मुस्लिम जनसँख्या )
वह पंजाब ,सिंध, आज के उत्तर प्रदेश को रोंद्ता हुआ बहराइच तक जा पंहुचा।
रास्ते में उसने लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम कराया,लाखों हिंदू औरतों के बलात्कार हुए, हजारों मन्दिर तोड़ डाले।
राह में उसे एक भी ऐसा हिन्दू वीर नही मिला जो उसका मान मर्दन कर सके। इस्लाम की जेहाद की आंधी को रोक सके।
परंतु बहराइच के राजा सुहेल देव राजभार ने उसको थामने का बीडा उठाया ।
वे अपनी सेना के साथ सलार गाजी के हत्याकांड को रोकने के लिए जा पहुंचे ।
महाराजा व हिन्दू वीरों ने सलार गाजीव उसकी दानवी सेना को मूली गाजर की तरह काट डाला । सलार गाजी मारा गया। उसकी भागती सेना के एक एक हत्यारे को काट डाला गया।
हिंदू ह्रदय राजा सुहेल देव राजभार ने अपने धर्म का पालन करते हुए, सलार गाजी को इस्लाम के अनुसार कब्र में दफ़न करा दिया।
कुछ समय पश्चात् तुगलक वंश के आने पर फीरोज तुगलक ने सलारगाजी को इस्लाम का सच्चा संत सिपाही घोषित करते हुए उसकी मजार बनवा दी।
आज उसी हिन्दुओं के हत्यारे, हिंदू औरतों के बलातकारी ,मूर्ती भंजन दानव को हिंदू समाज एक देवता की तरह पूजता है।
सलार गाजी हिन्दुओं का गाजी बाबा हो गया है।
हिंदू वीर शिरोमणि सुहेल देव भुला दिए गएँ है और सलार गाजी हिन्दुओं का भगवन बनकर हिन्दू समाज का पूजनीय हो गया है।
अब गाजी की मजार पूजने वाले ,ऐसे हिन्दुओं को मूर्ख न कहे तो क्या कहें ?
जिन भाइयों को इसके लिए लिंक चाहिए उनके लिए -
http://jhindu.blogspot.in/2012/01/blog-post_6336.html
ॐ शांति

कांग्रेसी मानसिकता और स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान

27 फ़रवरी 1931 को चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी. आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी. पति की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन माताश्री जग्रानी देवी उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं.
अगस्त 1947 तक जेल में फंसे रहे चंद्रशेखर आज़ाद के क्रन्तिकारी साथी सदाशिव राव मलकापुरकर को जब आज़ाद की माता की इस स्थिति के विषय में पता चला तो वे उनको लेने उनके घर पहुंचे और अपने घर झाँसी लेकर आये. क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा और सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था.
मार्च 1951 में चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक प्याऊ की स्थापना की और उस प्याऊ के पास ही चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला किया. आज़ाद के ही एक अन्य साथी तथा कुशल शिल्पकार रूद्र नारायण सिंह जी ने आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी थी.
झाँसी के नागरिकों के इन राष्ट्रवादी तेवरों से तिलमिलाई कांग्रेस की सरकार ने अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर के पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा दिया ताकि अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति की स्थापना ना की जा सके.
सदाशिव जी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति अपने सिर पर रखकर इस एलान के साथ कर्फ्यू तोड़कर अपने घर से निकल पड़े थे कि यदि चंद्रशेखर आज़ाद ने मातृभूमि के लिए अपने प्राण बलिदान कर दिए थे तो आज मुझे अवसर मिला है कि उनकी माताश्री के सम्मान के लिए मैं अपने प्राणों का बलिदान कर दूं. कांग्रेस की सरकार ने सदाशिव जी को गोली मार देने का आदेश दे डाला था किन्तु आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर प्याऊ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव जी को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में लेकर आगे बढ़ना शुरू कर दिया था l
अतः सरकार ने उस भीड़ पर भी गोली चलाने का आदेश दे डाला था. परिणामस्वरूप झाँसी की उस निहत्थी निरीह राष्ट्रभक्त जनता पर पुलिस की बंदूकों की गोली बरसने लगीl सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग हुए और तीन लोग मौत के घाट उतर गए थे. कांग्रेसी सरकार के इस खूनी तांडव का परिणाम यह हुआ था कि चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी थी और आते-जाते अनजान नागरिकों की प्यास बुझाने के लिए उनकी स्मृति में बने प्याऊ को भी पुलिस ने ध्वस्त कर दिया था.
अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की 2-3 फुट की मूर्ति के लिए उस देश में 5 फुट जमीन भी देने से उस देश कि सरकार ने इनकार कर दिया था, जिस देश के लिए चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे. कांग्रेस सरकारों ने हमे सिर्फ यह समझाने की कोशिश की है कि देश की आज़ादी का इकलौता ठेकेदार जवाहरलाल नेहरू था|
क्यूंकि कुछ लोगो को हर बात में लिंक चाहिए होता है , उनके लिए
http://atvnewschannel.tv/…/%E0%A4%B9%E0%A4%95%E0%A5%80%…/384
ॐ शांति

Saturday, August 15, 2015

गुलाम मानसिकता

मित्रों क्या इस स्वतंत्रता दिवस पर हमको ये विचार नहीं करना चाहिए कि हम कितने स्वतंत्र है आज |

क्या हम आज भी गुलामी के बेड़ियों में जकड़े नहीं है ?
कौन कौन सी गुलामी है फिर ये विचार करना आवश्यक है -

१. अंग्रेजियत की गुलामी हम आज भी कर रहे है | देश में आज भी सरकारी नौकरी हो चाहे प्राइवेट दोनों के लिए बिना अंग्रेजी के काम नहीं चलता | बिना अंग्रेजी के हम एक पग भी नहीं चल सकते इस देश में क्यूंकि अंग्रेजी आएगी तभी आप किसी कंपनी में नौकरी पा सकोगे |

२. संस्कारों की गुलामी - आज पश्चिम के संस्कारों की गुलामी में हम इतनी बुरी तरह फंस चुके है कि इससे निकलने का मार्ग ही नहीं दिखता | ये आरम्भ हुआ था नेहरु के ज़माने से और आज हम इसके जाल में पूरी तरह फंस चुके है |

३. भूषा की गुलामी - हमारा अपना पहनावा तो कहीं खो सा गया है हालांकि कुछ समय पहले तक करीब २० वर्ष पहले तक हमारे घरों की बहू बेटियां का परिवेश भारतीयता के अनुरूप था लेकिन अब तो वो भी बदल चुका है|

४. रोटी की गुलामी - आज का हमारा खाना कैसा हो गया है जिसमे फ़ास्ट फ़ूड ने अपना स्थान बना लिया है माँ के परांठो की जगह | फ़ास्ट फ़ूड जो हमें कहीं का नहीं छोड़ता उसने हमको अपना गुलाम बना लिया है | हमको घर के बने खाने से ज्यादा macdonald के बर्गर और dominos के पिज़्ज़ा की आदत पड़ गयी है जो कि हमारी सेहत के लिए बहुत ही खतरनाक है |

५. भेषज की गुलामी - हमारे आयुर्वेद का स्थान आज alopathy ले चुकी है| देश में alopathy को जो स्थान हासिल है वो हमारे आयुर्वेद को नहीं है हालाँकि मोदी सरकार अब इस तरह ध्यान दे रही है और आयुष मंत्रालय अब आयुर्वेद को देश में फिर से प्रतिष्ठापित करने के लिए कृतसंकल्प है |

६. सेकुलरिज्म के कीड़े की गुलामी - आज भारत के ज्यादातर नेता (मोदी विरोधी) और आपके हर युवा के हीरो यानि बॉलीवुड के अभिनेता अभिनेत्री और ये कुछ मीडिया चैनल सभी को सेकुलरिज्म के कीड़े ने अपना गुलाम बना रखा है जिसमे RSS और हिन्दू संस्थाओं को गाली देना ये अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते है | पता नहीं देश इससे कब आज़ाद होगा | लेकिन सोशल मीडिया के राष्ट्रभक्तों की फौज ने इस सेकुलरिज्म के कीड़े की गुलामी को और इनके द्वारा पोषित मीडिया को काफी हद तक कड़ी टक्कर दे रखी है आज|

७. त्योहारों की गुलामी - आज के भारत में हम अपने त्यौहार भी गुलामों की तरह मानाने लग गए है | हमें आज क्रिसमस और अंग्रेजी नव वर्ष और तरह के दिन जैसे फ्रेंडशिप दे mothers दे वैलेंटाइन डे मानना तो याद रहता है लेकिन अपने त्यौहार जैसे होली दिवाली उनका हम माखौल उड़ा रहे है कि दिवाली पर शोर की वजह से पटाखे मत जलाओ और होली पर पानी से मत खेलो और शिवरात्रि पर दूध मत चढाओ शिवलिंग पर | हालांकि कोई भी मीडिया वाला ईद पर बके काटने को कभी गलत नहीं मानता और बलि देना जरुरी समझता है |

सही मायनों में हमारा देश तब ही इस गुलाम मानसिकता से निजात पा सकता है जब हमारे मन पर अंग्रेजियत की काली कालिमा दूर हो जाए और अपने संस्कारों को हम ज्यादा महत्व दे न कि पश्चिम से कॉपी की हुई संस्कारों को |

जिस दिन हर बच्चा गीता के महत्व को समझेगा और वेद की ऋचाओं को आत्मसात करेगा और रामायण महाभारत के चर्चे बॉलीवुड की फिल्मों से ज्यादा होने लगेंगे या बॉलीवुड के अभिनेता अभिनेत्री की जगह हमारे युवाओं के ह्रदय सम्राट देश के वीर सपूत और देश पर मर मिटने वाले और देश के महापुरुष हो जायेंगे तब ही हम कह सकेंगे कि हाँ हमें सही अर्थों में आज़ादी हासिल हुई है नहीं तो ये आज़ादी आधी अधूरी ही कहलाएगी |

ये आज़ादी जो कि आज़ादी न होकर सिर्फ और सिर्फ सत्ता का हस्तांतरण मात्र था ब्रिटिश हुकूमत से नेहरु जैसे काले अंग्रेजों के हाथो में, उसको हम स्वतंत्रता तभी कहेंगे जब देश उपर लिखी गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर एक नया आगाज़ करेगा |

ॐ शांति
 

Tuesday, July 29, 2014

मत मारो मुझे अपनी कोख से


मैं प्यार भी दूंगी, दुलार भी दूंगी,
सार भी दूंगी, ये संसार भी दूंगी,
मुसीबत के समय
देश के लिये जिंदगी वार भी दूंगी,
इसलिए मत मारो मुझे|
मैं इज्जत भी दूंगी, जन्नत भी दूंगी,
सोहरत भी दूंगी, ताकत भी दूंगी,
मोका मिला तो
हर सपना हकीकत कर दूंगी,
इसलिए मत मारो मुझे|
पढूंगी, लिखूंगी अफसर बन जाऊँगी,
पर तुम्हारे सामने सदा शीश झुकाऊँगी
और समय आने पर
घर को स्वर्ग बनाउंगी,
इसलिए मत मारो मुझे|
अगर किसी कारणवस रह गई अनपढ़,
तो भी घर का सारा काम करवाउंगी,
गिनकर रात के तारों को,
तुमको अच्छी नींद सुलाऊँगी,
इसलिए मत मारो मुझे अपनी कोख से,,,,,,,,,,!!

Thursday, May 19, 2011

गो का महत्व व् उससे सम्बन्धी महत्वपूर्ण links





1.2 ) उत्तम माहेश्वरी (Youtube.com) के दूसरा व्याख्यान लिंक:

http://www.youtube.com/watch?v=ZxRHuxDHGfo&feature=related
 
Uttam Maheshwari Practically Cures With the Help of Cow’s Ghee Coma , Paralysis , Mental Retardation , Sinusitis , Asthma , Arthritis , Blood Clots in Brain , Deafness , Mental & Physical illness , Sleeplessness ,Stops Falling of Hairs etc.........

http://gopalgodham.org/index.html

पता संपर्क करें:


उत्तम गौरीशंकर माहेश्वरी
गौ चिकित्सा एवं गौ विज्ञान प्रचार केन्द्र
सी १६२ , अक्रुली औद्योगिक एस्टेट (सोसायटी)
अक्रुली मार्ग , कांदिवली (पूर्व),
मुंबई , महाराष्ट्र . पिन कोड : ४०० १०१
कार्यालय दूरभाष संख्या: ०२२ -२८४६३४३९
उत्तम माहेश्वरी का सम्पर्क सूत्र: ०९८६९४३३४३९


Swapnil Vilas Shirodkar
District : Belgaum , State : Karnataka
Country : Bharat ( India ).
Email Id : swapnilvilasresearch@gmail.com
Facebook Id : facebook.com/swapnilvilasresearch
Contact Numbers : 09353001211 , 09241759920
8553209645 , 09972944842 , ०९४४९२००९२०
 
ध्यान देना : यहाँ पर गाय शब्द का संबोधन भारतीय नस्ल ( जवारी ) ( देशी ) भारत देश की गाय से ही इन बीमारियों का इलाज होता है .


Note : The Word " Cow " Here Refers To Zebu (Bos primigenius indicus or Bos indicus), sometimes known as humped cattle, indicus cattle, or brahmin cattle are a type of domestic cattle originating in South Asia, particularly the Indian subcontinent Country : Bharat ( India ) Only .

Wednesday, May 18, 2011

कुछ महत्वपूर्ण links

satyarth prakash

ये पुस्तक मह्रिषी दयानंद जी द्वारा रचित है जिसमे वेद का ज्ञान है और जीवन जीने के लिए सभी बातें लिखी गयी है , इसका अध्ययन एक बार जीवन में अवश्य करना चाहिए |


ईश्वर ने हमें क्यों बनाया ?

इस सृष्टि में सर्वत्र व्याप्त अद्बुत नियमितता पर एक दृष्टिक्षेप ही काफ़ी है किसी महान नियंता की सत्ता को प्रमाणित करने के लिए | यह हस्ती इस परिपूर्णता से काम करती है कि वैज्ञानिक भी उसके शाश्वत नियमों को गणितीय समीकरणों में बांध पाएँ हैं | यह महान सत्ता प्रकाश वर्षों की दूरी पर स्थित दो असम्बद्ध कणों को भी इस सुनिश्चित रीति से गति प्रदान करती है कि गुरुत्वाकर्षण के सार्वभौमिक सिद्धांत का कभी भी अतिक्रमण नहीं हो सकता है |
वैज्ञानिक जानते हैं कि दो दूरस्थ कण गुरुत्वाकर्षण के नियमानुसार निकट आते हैं – परन्तु वह क्या कारण है जो उन्हें पास आने और योजनाबद्ध तरीके से सम्मिलित रूप में गतिमान होने की प्रेरणा देता है – यह बताने में वैज्ञानिक भी समर्थ नहीं हैं |
इस ब्रह्माण्ड को चलाने वाले ऐसे अन्य अनेक सिद्धांत हैं जिन में से कुछ के गणितीय समीकरणों को आधुनिक वैज्ञानिक बूझ पाएँ हैं, परन्तु अभी भी असंख्य रहस्य विस्तार से खोले जाने बाकी हैं |


अलग-अलग लोग इस हस्ती को अलग-अलग नामों से बुलाते हैं
वैज्ञानिकों के लिए यह ‘सृष्टि के नियम’ हैं, मुसलमान उसे ‘अल्लाह’ तथा ईसाई ‘गौड’ का नाम देते हैं
और ‘वेद’- विश्व की प्राचीनतम पुस्तक उसे अन्य अनेक नामों के साथ ही ‘ओ३म्’ या ‘ईश्वर’ कहती है |
किसी संकीर्ण मनोवृत्ति के अदूरदर्शी एवं छिद्रान्वेषी व्यक्ति को यह संपूर्ण जगत पूरी तरह निष्प्रयोजन लग सकता है, जो सिर्फ घटनाओं के आकस्मिक संयोग से उत्पन्न हुआ हो
अब यह अलग बात है कि उसका इस नतीजे पर पहुँचना ही यह प्रमाणित कर रहा है कि वह इस आकस्मिकता में भी नियमितता और उद्देश्य को खोजना चाहता है
बहरहाल, हम इस लेख में उसकी अवास्तविक सोच की चीरफाड़ नहीं करेंगे
हम यहां इस मौलिक प्रश्न पर विचार करेंगे जो कि इस विलक्षण विश्व के सौंदर्य और विचित्रताओं को देखकर अधिकतर यथार्थवादी (अज्ञेयवादी + आस्तिक) व्यक्तिओं के मन में उदित होता है – ईश्वर / गौड / अल्लाह ने हमें क्यों बनाया?

बहुत से मत-सम्प्रदाय इस मूलभूत सवाल का जवाब देने की कोशिश करते हैं और अधिकतर लोग इसी तलाश में एक सम्प्रदाय से दूसरे सम्प्रदाय की ख़ाक छानते फिरते हैं

अवधारणा १: ईश्वर ने हमें बनाया जिससे कि हम उसे पूजें

बहुत से धार्मिक विद्वानों का यह दावा है कि उसने हमें इसीलिए बनाया जिससे हम उसकी पूजा / इबादत कर सकें
अगर ऐसा मानें तो -

a. ईश्वर एक दम्भी, चापलूसी पसंद तानाशाह से अधिक और कुछ नहीं रह जाता
b. यह सिद्ध करता है कि ईश्वर अस्थिर है
वह अपनी आदतें बदलता रहता है इसलिए जब वह अनादि काल से अकेला था तो अचानक उसके मन में इस सृष्टि की रचना का ख्याल आया

मान लीजिये, अगर हम यह कहें कि, उसने किसी एक समय-बिंदु ’t1′ पर हमारी रचना का निश्चय किया
अब क्योंकि समय अनादि है और ईश्वर भी हमेशा से ही था- इसलिए यह समय ‘t1′ या अन्य कोई भी समय ‘t2′, ‘t3′ इत्यादि समय के मूल (जो की अनंत (infinite) दूरी पर है) से सम-दूरस्थ हैं
इसीलिए जब वह ‘t1′ समय पर अपनी मर्जी बदल सकता है तो कोई कारण नहीं कि वह ‘t2′, ‘t3′ या अन्य किसी भी समय पर अपनी मर्जी ना बदल सके
साथ ही, यह निश्चय भी नहीं किया जा सकता कि – उसने इस ‘t1′ समय से पहले कभी हमें (या अन्य किसी प्रजाति को) उत्पन्न और नष्ट न किया हो

जिन सभी सम्प्रदायों का यह दावा है कि अल्लाह ने हमें इसलिए बनाया जिससे कि हम उसकी इबादत कर सकें, वह भी अल्लाह की परिपूर्णता में विश्वास रखतें हैं
यदि अल्लाह पूर्ण है तो वह सभी समय-बिन्दुओं पर अपना काम एक सी निपुणता और एक से नियमों से करेगा
परिपूर्णता से तात्पर्य है कि वह निमिषमात्र भी अपनी आदतों में बदलाव नहीं लाता
अतः यदि ईश्वर / अल्लाह / गौड ने हमें ‘t1′ समय पर बनाया है तो अपनी पूर्णता बनाये रखने के लिए उसे हमें अन्य समय-अवधि पर भी इसी तरह बनाना होगा
क्योंकि वह हमें दो बार तो बना नहीं सकता इसलिए उसको हमें पहले विनष्ट करना होगा ताकि फिर से हमें बना सके
अब अगर वह हमें इसी तरह बनाता और बिगाड़ता रहा तो वह यह कैसे सुनिश्चित कर पायेगा कि हम नष्ट होने के बाद भी उसकी इबादत करते रहेंगे
इसका मतलब तो यह है कि, या तो अल्लाह समय के साथ ही अपनी मर्जी भी बदलता रहता है या फिर उसने हमें इबादत करने के लिए बनाया ही नहीं है
शंका: जब उसने खुद हमारा निर्माण किया है, तो वह हमें दुःख भोगने पर मजबूर क्यों करता है ?

यह सबसे ज्यादा हैरत में डालने वाला सवाल है, जिसका संतोषजनक समाधान कोई भी मत-सम्प्रदाय नहीं दे सके | यह अनीश्वरवाद (नास्तिकता) का जनक है
मुसलमानों में यह मान्यता है कि, अल्लाह के पास उसके सिंहासन के नीचे ” लौहे महफूज” नाम की एक किताब है, जिस में सभी जीवों के भविष्य के क्रिया-कलापों की जानकारी पूर्ण विस्तार से दी हुई है
पर इससे जीवों की कर्म-स्वातंत्र्य के अधिकार का हनन होता है
यदि मेरे कर्म पूर्व लिखित ही हैं, तो मुझे काफ़िर होने की सज़ा क्यों मिले ? और अल्लाह ने पहले से ही ”लौहे महफूज” में काफिरों के लिए सज़ा भी क्यों तय कर रखी है ? मुलसमान धर्मंप्रचारक इस विरोधाभास का जवाब चतुराई से देते हैं
जैसे की नव्य पैगम्बर जाकिर नाइक इसके जवाब में कहता है, ” एक कक्षा में सभी प्रकार के विद्यार्थी होते हैं
कुछ होशियार होते हैं और प्रथम क्रमांक पाते हैं और कुछ असफल हो जाते हैं
अब एक चतुर शिक्षक यह पहले से ही जान सकता है कि कौन सा विद्यार्थी किस क्रमांक को प्राप्त करेगा
इसका मतलब यह नहीं होता कि शिक्षक अपने विद्यार्थियों को निश्चित तरीके से ही कार्य करने पर बाध्य कर रहा है
इसका अर्थ सिर्फ यह है कि शिक्षक यह जानने में पूर्ण सक्षम है कि कौन क्या करेगा
और क्योंकि अल्लाह सर्वाधिक बुद्धिमान है, वह भविष्य में घटित होने वाली हर चीज़ को जानता है




बहुत ही स्वाभाविक लगने वाले इस जवाब में यह बड़ा छिद्र है – शिक्षक अपने विद्यार्थियों के कार्य का पूर्वानुमान सिर्फ तभी लगा सकते हैं जबकि वह उनके पूर्व और वर्त्तमान कार्यों का मूल्यांकन कर चुके हों
पर अल्लाह की बात करें तो उसने स्वयं ही तय कर रखा है कि कौन विद्यार्थी जन्मतः ही बुद्धिमान होगा और कौन मूर्ख !



हालाँकि, मोहनदास गाँधी का जन्म २ अक्तूबर १८६९ को हुआ था, अल्लाह ने उनके जन्म से लाखों वर्ष पहले ही यह तय कर दिया था कि यह बालक एक हिन्दू रहेगा परन्तु मुस्लिमों के प्रति अत्यधिक झुकाव रखते हुए उनका तुष्टिकरण करने में प्रथम क्रमांक पाएगा और फिर भी काफ़िर ही कहलाएगा और दोजख (नरक) के ही लायक समझा जाएगा, बतौर पवित्र मुस्लिम मुहम्मद अली के
अतः गाँधीजी के पास उनके लिए पूर्व निर्धारित मार्ग पर चलने के अलावा और कोई चारा ही नहीं था

यह शिक्षक-विद्यार्थी का तर्क तभी जायज है यदि अल्लाह आत्मा का निर्माण करने के बाद उसे पूर्ण विकसित होने का मौका दे- जब तक वह अपने लिए सही निर्णय करने में सक्षम ना हो जाए; बजाय इसके की अल्लाह पहले से ही ”लौहे महफूज” में उनके कर्मों को निर्धारित कर दे
इससे तो अल्लाह अन्यायी साबित होता है


कृपया “Helpless destiny in Islam” तथा ”God must be crazy” इन लेखों का अवलोकन करें


अवधारणा २: उसने हमें परखने के लिए बनाया है

हम पहले ही इस धारणा को ”God must be crazy” में अनेक उदाहरणों के द्वारा निरस्त कर चुके हैं
फिर भी यदि यह माना जाए कि वह हमारी परीक्षा ही ले रहा है, तब तो उसके पास ”लौहे महफूज” होना ही नहीं चाहिए या यूँ कहें कि तब वह पहले से ही हमारा भविष्य जान ही नहीं सकता
क्योंकि भविष्य जानता है तो परीक्षा की आवश्यकता ही क्या रह जाती है ? और यदि ऐसा कहें कि वह दोनों कार्य कर रहा है तो उसका यह बर्ताव एक निरंकुश तानाशाह की तरह है जिसे तमाशे करना पसंद है

आखिर उसने हमें बनाया ही क्यों ???

इस उलझाने वाले सवाल के जवाब में दी जानेवाली सभी अविश्वसनीय कैफियतों को हम निष्प्रभावी कर चुकें हैं | यदि परखने के लिए नहीं और पूजने के लिए भी नहीं, तो और क्या कारण हो सकता है हमें बनाने का ? यह हमें ख़ुशी या आनंद देने के लिए तो हो नहीं सकता क्योंकि इस दुनिया में बहुत सी निर्दयी और क्रूर घटनाओं को हम घटित होते हुए देखते हैं – यहां तक कि लोग इस बेदर्द दुनिया से तंग आकर आत्महत्या तक कर लेते हैं | चाहे ख़ुशी देने के लिए हो या दुःख देने के लिए या फिर परीक्षा लेने के लिए हो, उसने हमें बनाया ही क्यों ? क्या वह सिर्फ अपने एकाकीपन का लुत्फ़ ही नहीं उठा सकता था ? क्या जरुरत थी कि पहले हमें बनाये और फिर हमें अपने इशारों पर नचाए | विवश होकर यह कहने के आलावा और कोई रास्ता नहीं बचता कि “अल्लाह बेहतर जानता है” या “खुदा जाने” या “ईश्वर ही जाने उसके खेल” या फिर “गोली मार भेजे में” |
बौद्ध धर्मं प्रयोगात्मक है, वह तो इस सवाल से कोई सरोकार ही नहीं रखता | वह कहता है कि इस प्रकार के प्रश्नों के बारे में सोचने से पहले हमें मन को साध कर इन्द्रिय निग्रह द्वारा अपनी प्रज्ञा का स्तर ऊँचा उठाना चाहिए | दुनिया की चकाचौंध में फंसे हुए व्यक्ति के लिए जो कि इससे परे कुछ भी देखने या समझने में असमर्थ है, यह एक बहुत ही व्यावहारिक सुझाव है  | इस सबके बावजूद, हमारे अंतस में कहीं ना कहीं यह प्रश्न सुलगता रहता है - ईश्वर ने हमें बनाया क्यों ?
जब तक इस प्रश्न का संतोषप्रद जवाब नहीं मिल जाता – सभी कुछ निरुद्देश्य लगता है और कोई भी चीज़ मायने नहीं रखती | यह सच है कि इसका सही जवाब सिर्फ ईश्वर ही जानता है परन्तु मानव जाती के प्रथम ग्रंथ – ‘वेद’ इस पेचीदा सवाल पर पर्याप्त प्रकाश डालतें हैं ताकि आगे हम इसकी गहराई में उतर सकें | वेद स्पष्ट और निर्णायक रूप से कहतें हैं कि ईश्वर ने हमें नहीं बनाया | और क्योंकि ईश्वर ने हमें कभी बनाया ही नहीं, वह हमें नष्ट भी नहीं करता | जीवात्मा का सृजन और नाश ईश्वर के कार्यक्षेत्र में नहीं आता | अतः जिस प्रकार ईश्वर अनादि और अविनाशी है, उसी प्रकार हम भी हैं | हमारा अस्तित्व ईश्वर के साथ हमेशा से है और आगे भी निरंतर रहेगा


प्रश्न: यदि ईश्वर ने हमें नहीं बनाया तो वह करता क्या है?
उत्तर: ईश्वर वही करता है जो वह अब कर रहा है | वह हमारा व्यवस्थापन (पालन, कर्म-फल प्रबंधन आदि) करता है

प्रश्न: तब उसने यह विश्व और ब्रह्माण्ड क्यों बनाया ?
उत्तर: ईश्वर ने इस जगत और ब्रह्माण्ड के हेतु (मूल कारण) का निर्माण नहीं किया | इस जगत का मूल कारण ‘प्रकृति’ हमेशा से ही थी और आगे भी हमेशा रहेगी

प्रश्न: जब ईश्वर ने इस विश्व को और हमें नहीं बनाया, तो वह करता क्या है – यह एक दुविधा है ?
उत्तर: जैसा पहले बताया जा चुका है, वह हमारा प्रबंधन करता है | विस्तृत रूप में देखा जाए तो – जिस तरह कुम्हार मिटटी और पानी से बर्तन बनता है, उसी तरह ईश्वर इस निर्जीव प्रकृति का रूपांतरण कर यह विश्व / ब्रह्माण्ड बनाता है | फिर वह इस इस ब्रह्माण्ड में जीवात्माओं का संयोजन करता है

प्रश्न: यह सब वह क्यों करता है ?
उत्तर: यह सब वह करता है ताकि जीवात्मा कर्म करके आनंद प्राप्त कर सके इसलिए वह जीवात्मा को ब्रह्माण्ड के साथ इस प्रकार संयुक्त करता है जिससे कर्म के सिद्धांत हर समय पूर्णतया बने रहें | इस प्रकार, जीवात्मा अपने कर्मों द्वारा आनंद को बढ़ा या घटा सकता है

प्रश्न: हमें ख़ुशी देने के लिए उसे इतना प्रपंच करने कि क्या आवश्यकता है ? क्या वो सीधे तौर पर हमें ख़ुशी नहीं दे सकता ?
उत्तर: ईश्वर अपने गुणधर्म के विपरीत कुछ नहीं करता जैसे, वह स्वयं को न तो कभी नष्ट कर सकता है और न ही नया ईश्वर बना सकता है जीवात्मा के भी कुछ लक्षण हैं – वह चेतन है, सत् है परन्तु आनंद से रहित है | वह स्वयं कुछ नहीं कर सकता ये उस मायक्रोप्रोसेसर की तरह है जो सिर्फ मदर बोर्ड और पॉवर सप्लाय से जुड़ने पर ही कार्य कर पाता है अतः ईश्वर ने कंप्यूटर सिस्टम नुमा ब्रह्माण्ड को बनाया जिससे कि मायक्रोप्रोसेसर नुमा जीवात्मा कार्य कर पाए और अपने सामर्थ्य का उपयोग कर आनंद को प्राप्त करे

प्रश्न: कर्म का सिद्धांत कैसे काम करता है ?
उत्तर: कृपया ‘FAQ on Theory of Karma’ का भी अवलोकन करें
मूलतः जीवात्मा के ६ गुण हैं : इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख,और ज्ञान
इन सब के मूल में जीव की इच्छा शक्ति और परम आनंद ( मोक्ष ) प्राप्त करने का उद्देश्य है
जब भी जीवात्मा अपने स्वाभाविक गुणों के अनुरूप कार्य करेगा उसके गुण अधिक मुखरित होंगे और वह अपने लक्ष्य के अधिक निकट पहुंचता जाएगा | किन्तु, यदि वह अस्वाभाविक व्यवहार करेगा तो उसके गुणों की अभिव्यक्ति कम होती जाएगी साथ ही वह लक्ष्य से भटक जाएगा | अतः अपने कार्यों के अनुसार जीवात्मा चित्त (जीवात्मा का एक लक्षण ) की विभिन्न अवस्थाओं को प्राप्त करता है | ईश्वर जीवात्मा के इस लक्षण के अनुसार, उसे ऐसा वातावरण प्रदान करता है | जिससे उसकी इच्छापूर्ति एवं लक्ष्य प्राप्ति में सहायता हो | अतः परमानन्द कार्यों का परिणाम है, कार्य विचारों का, विचार ज्ञान का एवं ज्ञान इच्छा शक्ति का परिणाम है | इससे विपरीत भी सही है – यदि कार्य गलत होंगे तो ज्ञान कम होता जाएगा – परिणामस्वरूप इच्छाशक्ति घट जाएगी | और जब कोई अत्यधिक बुरे कर्म करे तो ईश्वर ऐसे जीवात्माओं को अ-मानव ( अन्य विविध प्राणी ) प्रजाति में भेजता है, जहाँ वे अपनी इच्छा शक्ति का प्रभावी उपयोग न कर पाएँ | यह जीवात्मा के चित्त में जमे मैल की शुद्धि के लिए है | यह प्रक्रिया मृत्यु से बाधित नहीं होती | मृत्यु इस यात्रा में मात्र एक छोटा विराम या पड़ाव है, जहाँ आप अपने वाहन से उतरकर भोजन पानी से सज्ज हो कर नयी शुरुआत करते हैं

प्रश्न: इसे एक ही बार में समझना काफ़ी कठिन है , कृपया संक्षेप में समझाइये -
उत्तर:
a) ईश्वर, जीव और प्रकृति तीनों शाश्वत सत्ताएं हैं जो हमेशा से थी और हमेशा ही रहेंगी| यह त्रैतवाद का सिद्धांत है
b) ईश्वर कभी जीव या प्रकृति का सृजन अथवा नाश नहीं करता | वह तो सिर्फ एक उत्कृष्ट प्रबंधक की तरह आत्मा और प्रकृति का संयोजन इस तरह करता है ताकि जीव अपने प्रयत्न से कर्म – फ़ल के अनुसार मोक्ष प्राप्त कर सके
c) हमारे साथ घटित होने वाली सारी घटनाएं दरअसल हमारे प्रयत्न के फ़लस्वरूप हैं जो हम अंतिम क्षण तक करते हैं और हम अपने प्रारब्ध को हमारे वर्तमान और भविष्य के कर्मों द्वारा बदल सकते हैं |
d) मृत्यु कभी अंतिम विराम नहीं होती वह तो हमारी अबाध यात्रा में एक अल्प-विराम (विश्रांति) है
e) जब हम ईश्वर को निर्माता कहते हैं तो उसका अर्थ है कि वह जीव और प्रकृति को साथ लाकर संयोजित एवं व्यवस्थित आकार प्रदान करता है | वह जीवों की मदद की लिए ही ब्रह्माण्ड की व्यवस्था करता है | अंततः विनष्ट कर के पुनः निर्माण की नयी प्रक्रिया शुरू करता है | यह सम्पूर्ण निर्माण- पालन- विनाश की प्रक्रिया उसी तरह है जैसे रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आती है ऐसा कोई समय नहीं था जब यह प्रक्रिया नहीं थी या ऐसा कोई समय होगा भी नहीं जब यह प्रक्रिया न हो या बंद हो जाय | इसलिए, यही कारण है कि वह ब्रह्मा (निर्माता), विष्णु (पालनहार) और शिव (प्रलयकर्ता) कहलाता है
f) ईश्वर का कोई गुण नहीं बदलता, अतः वह हमेशा जीव के कल्याण के लिए ही कार्य करता है
g) जीवात्मा के पास स्वतंत्र इच्छा है, पर वह उसके ज्ञान के अनुसार है जो उसके कर्मों पर आश्रित है यही कर्म सिद्धांत का मूलाधार है
h) ईश्वर सदैव हमारे साथ है तथा हमेशा हमारी मदद करता है
हमें अपनी अंतरात्मा की आवाज सुननी चाहिए और हर क्षण सत्य का स्वीकार तथा असत्य का परित्याग करना चाहिए सत्य की चाह ही जीवात्मा का गुण तथा इस जगत का प्रयोजन है
जब हम सत्य का स्वीकार करने लगते हैं तो हम तेजी से हमारे अंतिम लक्ष्य – मोक्ष की तरफ़ बढ़ते हैं सारांश में, ईश्वर ने हमें अभाव से कभी नहीं बनाया – उसने इस अद्भुत संसार की रचना हमारे लिए की, हमारी सहायता करने के लिए की और हम इस प्रयोजन की पूर्ति – सत्य की खोज करके पूरी कर सकते हैं यही वेदों का मुख्य सन्देश और यही जीवन का सार तत्व है

प्रश्न: एक अंतिम सवाल – इस बात पर कैसे यकीन करें कि यह सत्य है और कोई नव निर्मित सिद्धांत नहीं ?
उत्तर: इस पर यकीन करने के अनेक कारण हैं, जैसे -

यहां कही गई प्रत्येक बात वेदानुकूल है जो कि संसार की प्राचीनतम और अपरिवर्तनीय पुस्तक है

नीचे दिए गये पाठ का अवलोकन करने से आप अनेक संदर्भ विस्तार से देख सकते हैं
यह सिद्धांत सहज बोध और जीवन के नित्य प्रति के अवलोकन के अनुसार है
यह आखें मूंदकर किसी सिद्धांत को मानने की बात नहीं है
कर्म के सिद्धांत तो सर्वत्र क्रियान्वित होते हुए दिखायी देते हैं
दूर क्यों जाएं? आप मात्र ३० दिनों तक सकारात्मक, प्रसन्न एवं उत्साही बनकर देखिये
नकारात्मक एवं बुरे कर्मों को अपने से दूर रखिये -और फिर देखिये आप क्या अनुभव करते हैं
इस छोटे से प्रयोग से ही देखिये आप के जीवन में आनंद का स्तर कहां तक पहुँचता है
जिन्हें किसी ने नहीं देखा ऐसे चमत्कार की कहानियों या विकासवाद के सिद्धांत से तो यह अधिक विश्वसनीय है
वेद उसका अन्धानुकरण करने के लिए कभी नहीं कहते
इस सिद्धांत के इस क्रियात्मक पक्ष को हर विवेकशील व्यक्ति स्वीकार करेगा – कि ज्ञानपूर्वक सत्य का ग्रहण करें और असत्य को त्यागें
Religion of Vedas में वर्णित अच्छे कार्यों को करें
स्मरण रखें कि वेदों का मार्ग अत्यधिक संगठित और प्रेरणादायी है
जिसमें विश्वास करने की कोई अनिवार्यता नहीं है
वेदों का अभिप्राय यह है – जैसे ही आप स्वतः सत्य को स्वीकार और असत्य को छोड़ना शुरू करते हैं चीजें स्वतः आप के सामने स्पष्ट हो जाती हैं
यदि आप इस से आश्वस्त नहीं हैं तो चाहे इसे कुछ भी कहें, पर इससे अधिक तार्किक, सहज- स्वाभाविक और प्रेरणात्मक सिद्धांत और कोई नहीं है – ” ईश्वर हमेशा से है तथा हरदम हमारी रक्षा और पालन करता है और हमारे कर्म स्वातंत्र्य का सम्मान करते हुए अपने स्वाभाव से हटे बिना, हमारे कल्याण के लिए ही कार्य करता है और हमें अवसर भी प्रदान करता है”
विश्वस्तरीय सर्वाधिक बिकने वाली ” The Secret ” में इस सिद्धांत का जरा सा पुट लेते हुए अनेकों की जिंदगी को बदल दिया है इससे सम्पूर्ण सिद्धांत के सामर्थ्य और प्रभाव का अंदाजा लग जाता है
इसे हम अग्निवीर में अपनी समझ से सर्वाधिक अच्छे रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं

नोट: इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए सत्यार्थ प्रकाश के ७,८ और ९ वें अध्याय का स्वाध्याय अवश्य करें
१२५ वर्ष पुरानी भाषा होते हुए भी इस पुस्तक में अमूल्य एवं अलभ्य सिद्धांत वर्णित हैं

हिंदी आवृत्ति: http://c552545.r45.cf2.rackcdn.com/wp-content/uploads/2010/09/satyarth_prakash_opt4.पीडीऍफ़


जो व्यक्ति ध्यान पूर्वक इन तत्वों को समझ सके और आत्मसात करे उसे स्वयं के उद्धार के लिए अन्य किसी की आवश्यकता नहीं है
अग्निवीर के आन्दोलन का आधार यही वे अध्याय हैं जो जीवन को बदलने वाले साबित हुए हैं
आगे बढ़ें, और स्वयं अपने आप में एक नया रूपांतरण अनुभव करें


सत्यमेव जयते!

लिया गया है : http://agniveer.com/4633/why-did-god-create-us-hi/